वेदार्थप्रतीतिः (भाग-1)

By DARSHAN YOG DHARMARTH TRUST (ROJAD)

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Format Hardcopy
Author स्वामी ध्रुवदेव जी परिव्राजक
Editor / Translator Name स्वामी ध्रुवदेव जी परिव्राजक
Writer Name स्वामी ध्रुवदेव जी परिव्राजक
Publisher Name DARSHAN YOG DHARMARTH TRUST (ROJAD)
Language Hindi
No. of Pages 148
Size 14 X 22

Description

श्री स्वामी ध्रुवदेव जी परिव्राजक (रोजड़) संस्कृत व्याकरण, दर्शन शास्त्र एवं निरुक्त के विद्वान् हैं । वे वेदों का गहन अध्ययन करते रहते हैं ।

इस हिन्दी पुस्तक में कुल 124 वेद मन्त्रों के आर्य समाज के प्रवर्त्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती कृत आध्यात्मिक भाषार्थ, व्याख्यान व भावार्थों का संकलन किया गया है ।

इस पुस्तक में महर्षि दयानन्द रचित वेद भाष्य, आर्याभिविनय, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका तथा सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रन्थों से संगृहीत कर 124 वेद मन्त्रों के अर्थ को उत्तमता से संकलित किया है ।

कहीं-कहीं अर्थ की स्पष्टता के लिए आवश्यक टिप्पणियाँ भी दी गई हैं ।

महर्षि दयानन्द ने वेदों का मुख्य प्रयोजन ईश्वर प्राप्ति या ब्रह्म विद्या को बताया है । वेदों में ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव का वर्णन करते हुए अनेकानेक मन्त्र पाए जाते हैं । महर्षि दयानन्द ने ऐसे मन्त्रों के रहस्य अपने वेद भाष्यों तथा अन्य ग्रन्थों में खोले हैं । उन्हीं के पुरुषार्थ ने वेदों को कर्मकाण्ड की संकीर्ण कारा से मुक्ति दिलाई है और उन्हें सर्व सत्य विद्या के स्रोत के रूप में प्रतिष्ठित किए हैं ।

स्वामी ध्रुवदेव जी की यह पुस्तक वेद स्वाध्याय के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी । इसके अध्ययन से वेदों के आध्यात्मिक पक्ष का सुगमता से परिचय प्राप्त किया जा सकता है ।

आशा है कि पाठक वर्ग इस पुस्तक का स्वागत करेगा और आर्यों की सर्वाधिक पुरातन वैदिक अध्यात्म विद्या से स्वयं लाभान्वित होगा और अन्यों को भी इससे लाभान्वित करने का प्रयास करेगा ।

आशा करते हैं कि इस पुस्तक का दूसरा भाग भी यथाशीघ्र तैयार होकर हमारे समक्ष प्रस्तुत होगा ।

ऐसे वेद विषयक उत्तम संकलन को प्रस्तुत करने के लिए स्वामी ध्रुवदेव जी तथा प्रकाशन संस्था दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट दोनों को बधाई !

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